आजादी के मायने

आज़ादी …जी हा आज़ादी कुछ भी करने की…. आज़ादी कुछ भी बोलने की…. आज़ादी कभी भी कही पे जाने की…. आज़ादी किसी भी मजहब को अपनाने की… आज़ादी किसी से प्रेम करने की…

क्या है आज़ादी के मायने??
सोचिये..

अभिव्यक्ति की आज़ादी, मतलब बोलने की आज़ादी, किसी भी सामाजिक विषय जो हमें प्रभावित करता है उस पर खुले दिल से अपने विचार रखने की आज़ादी, देश की किसी भी राजनैतिक पार्टी से सहमत या असहमत होने की आज़ादी, क्या हम आज़ाद है ऐसा करने के लिए ??… मुझे तो नहीं लगता… इस देश में किसी हिंदुत्व विचारधारा का झंडा ऊँचा करने वाली पार्टी से असहमत होना आपके लिए संकट बन सकता है… कब कोई आपकी असहमति को राष्ट्रद्रोह और राष्ट्रप्रेम के चश्मे से देखने लग जाये… और अगले ही पल आपको राष्ट्रद्रोही घोषित कर बैठे…..मेरी नज़र में तो ऐसे छद्म राष्ट्रवादिता के चरम पर बैठे पाखंडी लोग आपकी आज़ादी छीनने की जुगत में लगे है… इस आज़ादी के क्या मायने है??

आप ईश्वर को मानते है… या अल्लाह को… भगवान चुनने की आज़ादी किसने छीनी है… क्यों आस्था के ढकोसलेबाज़ ठेकेदार आपको अपना भगवान चुनने की आज़ादी नहीं देते…आज कल आंदोलन का बड़ा बोल बाला है.. इनके खिलाफ कौन करेगा आंदोलन?

सोने और हीरो से जड़े मंदिर के अंदर रखी पत्थर की मूर्ति में आस्था रखने वाले छोटी जाति के लोगो को अंदर जाने की आज़ादी है क्या??
नहीं…. उनकी तरफ से कौन लड़ेगा… अपने भगवान के दर्शन की आज़ादी कौन देगा??

आज़ादी है की नहीं ये सोचने की बात है … और इसके अलग अलग पहलू है.…आज़ादी के साथ लोकतंत्र समान अधिकार भी देता है… क्या समान अधिकार है हमें?… देश की ९९% धन दौलत सिर्फ कुछ चंद अमीर घरानो के पास है और देश का किसान आत्महत्या कर रहा है.. हमारा कुसूर कम नहीं है साहब… महंगे महंगे रेस्त्रां में जायेंगे… आधा खाएंगे आधा छोड़ देंगे… हजारो का बिल बनेगा और ख़ुशी ख़ुशी देके चले आएंगे …क्यों नहीं? हमने कमाया है आज़ादी है हमें जहाँ मर्ज़ी चाहे उड़ाएं…थाली में कम कुछ नहीं पड़ना चाहिए ..चाहे बाद में फेंका ही जाए… जी हमारे पास पैसा है आज़ादी है…हम चाहे जो करे … हम कभी नहीं सोचते कि दूसरी तरफ जो किसान आत्महत्या करते है उनके बच्चे भी भूख से मर रहे है…हम नहीं सोचते कि हमारी थाली में खाना पहुचाने के लिए उस किसान ने खून पसीने से खेत सींचे…. क्या हमारी इतनी भी जिम्मेदारी नहीं बनती कि उस किसान का बेटा भूख से न मरे?… भगवान हमें हवा पानी और सूरज कि रौशनी देता है तो हम सब ने उनके लिए करोडो के मंदिर बना दिए… और उस किसान का क्या साहब जिसने आपकी थाली तक अनाज पहुचाने के लिए..अपना शरीर गला दिया .. बारिश हो धूप हो सर्दी हो उसे कोई फर्क नहीं पड़ता… सोचिये क्या उन्हें सिर्फ आत्महत्या करने कि आज़ादी है? …क्या उनके बच्चो को भूख से मरने कि आज़ादी है?.. भूख से बच भी गए तो क्या अशिछित रहने की आज़ादी है?
आखिर आपके लिए क्या है इस आज़ादी की मायने?? आप भी सोचें… विचार करे और अपने विचार नीचे कॉमेंट करे|

PS:किसान का बेटा हूँ इसलिए ऐसी आज़ादी से आहत हूँ .. कठोर शब्दों के लिए छमा याचक हूँ|

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